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147 वर्ष पूर्व महर्षि ने आर्य समाज जैसी क्रांतिकारी संस्था की स्थापना की। उत्थान और विकास की पर्याय यह संस्था आज अधोगति की ओर है। मैंने एक आर्य युवा मन की किंकर्तव्यविमूढ़ता, रोष और आशा को काव्य रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।